साहिल सहरी साहब ने मुझे बहुत से
मुशायरों में खुद भी बुलाया और दूसरी जगह भी प्रमोट किया ये कह कर के
"अच्छी शायरी को अच्छे लोगों तक पहुंचना चाहिए ये हम अदीबों की
ज़िम्मेदारी है मैं स्वयं भी और मेरी टूटी फूटी शायरी भी उनके इस
सच्चे जज्बे की हमेशा शुक्रगुज़ार रहेगी.स्वर्गीय साहिल सहरी बड़े साफ़ दिल बड़ी साफ़ साफ़ बात करने वाले इंसान थे किसी तरह की मसलहत {diplomacy}और गीबत {निंदा} को बिलकुल पसंद नहीं करते थे
ये बात सच है मगर कह के कौन जाता है
" सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना" आदिल रशीद{2005}
कुछ "अजब से लोगों ने" कुछ "अजब से अंदाज़" में उनको ये शेर सुनाया और
उनको "कुछ अजब " से मतलब समझाने चाहे उन्होंने उन्हें कोई भी उत्तर दिए
बिना जेब से मोबाइल निकाल कर उन के सामने ही मुझे फ़ोन लगाया और आदत
अनुसार हँसते हुए कहा "बरखुरदार मुबारक हो हमारा रिकॉर्ड तोड़ दिया" मैं
सटपटा गया और घबराते हुए मैं ने कहा "उस्ताद मैं समझा नहीं" तो उन्होंने
हँसते हुए बगैर किसी का नाम लेते हुए कहा " कुछ लोग मुझे तुम्हारा ये शेर
सुना रहे हैं जो तुमने मेरे मिसरे पर मिसरा लगाया है मैं ने सोचा के तुमने
अच्छा काम किया है तो इनके सामने ही तुम्हे मुबारकबाद दे दूँ"
मेरे उस वक़्त भी और बाद में भी कई कई बार
इल्तिजा {प्रार्थना}करने पर भी उन्होंने मुझे उन "अजीब से लोगों "के नाम
कभी नहीं बताये और अब अगर वो उनके नाम बताना भी चाहें तो बता नहीं सकते
क्यूँ के रूहें बोलती नहीं उनको अपनी बात कहने के लिए जिस्म की ज़रुरत
होती है.और जिस्म तो आज सुपुर्दे खाक हो गया
मैं ने जब-जब उनसे ऐसे "अजीब आदमी नुमा
प्राणियों" के विषय में बात की उन्होंने यही कहा के आदिल मियां तुम
अपना काम {साहित्य सेवा} करते रहो इस साहित्य के सफ़र में तुमको अभी बहुत
से अजीब अजीब प्राणी मिलेंगे
साहिल सहरी भी पेशे से घडी साज़ थे और मैं भी पेशे से घडी साज़. एक बार जब मैं ने उन्हें अपना ये शेर सुनाया
''औरों की घड़ियाँ हमने संवारी हैं रात दिन
और अपनी इक घडी की हिफाज़त न कर सके"
तो
उनकी आँख नम हो गई और उन्होंने मेरे सर पर हाथ रख कर मुबारकबाद दी और कहा
मुझे ख़ुशी के साथ अफ़सोस है आदिल रशीद कि ये शेर मुझे कहना चाहिए था.
मरहूम साहिल सहरी सच्चे शायर सच्चे इंसान थे
उन्होंने कभी मुशायरे पढने के लिए जोड़ तोड़ की राजनीती नहीं की,कभी दाद
हासिल करने के लिए अपने ही बन्दों द्वारा फरमाइश की पर्ची भेजने का
भोंडा ढोंग भी नहीं किया वो अपने आप को संतुष्ट करने के लिए शेर कहते
थे.अच्छे शेर कहने और सुनने का उन्हें जूनून था अक्सर रात के पिछले
पहर उनका फोन आ जाता और हमेशा की तरह वही एक जुमला होता "भाई कोई अच्छा
शेर सुना दो" जब मैं अपना या अपने हाफ़िज़े में से किसी और का कोई अच्छा
शेर उन्हें सुना देता तो एक लम्बी ठंडी सांस लेते हुए कहते अब नींद आ
जायेगी वो अक्सर शेर कहने के लिए पूरी पूरी रात जागते इसी लिए उन्होंने
अपने एक शेर मे कहा भी कि
ये हमसे पूछो के किस तरह शेर होते हैं
के हम सहर की अजानो के बाद सोते हैं
साहिल
सहरी के उस्ताद कुंवर महिंदर सिंह बेदी "सहर" थे इसी लिए वो सहरी लिखते
थे. साहिल सहरी कुंवर महिंदर सिंह बेदी "सहर" जिन्हें सब "आली जा " कहते
थे के बेहद अज़ीज़ शागिर्द थे जिसका ज़िक्र आली जा ने यादो का जश्न में
बड़ी ही मुहब्बत से किया है.जो लोग आली जा की ज़िदगी में आली जा से एक
मुलाक़ात करने या आली जा का शागिर्द होने के लिए साहिल सहरी के आगे पीछे
घूमते थे आली जा की आँखे बंद होते ही उन्ही लोगों ने साहिल सहरी के पीछे
से गाल बजाने शुरू कर दिए लेकिन उनके मरते दम तक उनके सामने नज़रे उठाने कि
हिम्मत न कर सके.
साहिल सहरी को हमेशा इस बात का गिला रहा के
लोगों ने उनसे लिया तो बहुत कुछ मगर जो उनका हक था वो तक कभी नहीं दिया. कई
ऐसे कच्ची मिटटी के दीये जिन्हें साहिल सहरी ने आफ़ताब{सूरज जैसा
प्रकाशमान} किया था मौक़ा पड़ने पर उन्होंने अपने मुहसिन{अहसान करने वाला}
का हाथ जलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
साहिल सहरी साहिब से यूँ तो मशवरा करने वालों
कि गिनती बहुत ही जियादा है लेकिन चन्द शागिर्द जिनका नाम साहिल सहरी
साहिब बड़े ही फख्र से लेते थे उनमे ख्याल खन्ना कानपुरी,मशहूर नाजिम ऐ
मुशायरा और शायर एजाज़ अंसारी दिल्ली,इकबाल आजर देहरादून,अमर साहनी फरीदाबाद वसी अहमद वसी
फरुखाबाद,अबसार सिद्दीकी खटीमा शकील सहर एटवी, के नाम काबिले ज़िक्र हैं .
उनका एक ग़ज़ल संग्रह "सफ़र सफर है" 2005
में प्रकाशित होकर मशहूर हो चूका था और उनकी ज़िन्दगी में ही उनके अज़ीज़
शागिर्द इकबाल आजर साहेब के हाथो उनकी दूसरी किताब पर काम शरू हो चूका था
जिसे अब फख्रे साहिल सहरी जनाब इकबाल आजर "कुल्लियाते साहिल सहरी " के नाम
से मुरत्तब {संकलित}कर रहे हैं.जो जल्द ही प्रकाशित होगा
साहिल सहरी को उर्दू हिंदी मे उनके योगदान
के लिए अनेको सम्मान मिले दूरदर्शन आकाशवाणी ऍफ़ एम् चैनलों पर उनका कलाम
प्रसारित हुआ तथा भारत और भारत से बाहर पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित
भी हुआ