साहित्य मे चोरी ( भाग-1) आदिल रशीद
कभी -कभी एक ही विषय पर दो कवि एक ही तरह से कहते हैं, उस को चोरी कहा जाए या इत्तिफाक ये एक अहम् सवाल है आज कल तो ज़रा सा ख्याल टकरा जाने को लोग चोरी कह देते हैं और जिस व्यक्ति के पास जितने अधिक शब्द हैं वो उतना ही बड़ा लेख लिख मारता है और स्वयंको बहुत बड़ा बुद्धिजीवी साबित करने की कोशिश मे लग जाता है और बात को बहस का रूप दे देता है जब के सत्य ये होता है के वो कवि या शायर चोर नहीं होता .
जब भी कोइ साहित्य मे चोरी की बात करता है तो मैं कहता हूँ ये तवारुदहै और ये किसी के भी साथ हो सकता है खास तौर से नए शायर के साथ जिसने बहुत अधिक साहित्य न पढ़ा हो इसीलिए मैं कहता हूँ के कोई भी नया शेर कहने के बाद ऐसे व्यक्ति को जरूर सुनाना चाहिए जिस ने बहुत सा साहित्य पढ़ा भी हो और उसे याद भी हो नहीं तो आपके तवारुद को दुनिया चोरी कहेगी
तवारुद शब्द अरबी का है पुर्लिंग है इसके अर्थ होते हैं एक ही चीज़ का दो जगह उतरना / एक ही ख्याल का दो अलग अलग कवियों शायरों के यहाँ कहा जाना
जब भी कोइ साहित्य मे चोरी की बात करता है तो मैं कहता हूँ ये तवारुदहै और ये किसी के भी साथ हो सकता है खास तौर से नए शायर के साथ जिसने बहुत अधिक साहित्य न पढ़ा हो इसीलिए मैं कहता हूँ के कोई भी नया शेर कहने के बाद ऐसे व्यक्ति को जरूर सुनाना चाहिए जिस ने बहुत सा साहित्य पढ़ा भी हो और उसे याद भी हो नहीं तो आपके तवारुद को दुनिया चोरी कहेगी
तवारुद शब्द अरबी का है पुर्लिंग है इसके अर्थ होते हैं एक ही चीज़ का दो जगह उतरना / एक ही ख्याल का दो अलग अलग कवियों शायरों के यहाँ कहा जाना
तवारुद के हवाले से जो २ दोहे मैं उदाहरण के तौर पर रखता हूँ वो कबीर और रहीम के हैं जो अपने अपने काल के महान कवि है
वृक्ष कबहुँ नहि फल भखे, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारण, साधुन धरा शरीर।-कबीर(1440-1518
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।-रहीम(1556-1627.
अब आते हैं मुख्य बात पर ये चोरी है या इत्तफाक:
तो उस ज़माने मे बात का किसी दुसरे के पास पहुंचना नामुमकिन सा था साधन नहीं थे T.V. net फोन अखबार उस समय एक बात दुसरे तक पहुँचने का कोई माध्यम नहीं था और अगर पहुँच भी जाए तो उसमे एक लम्बा और बहुत लम्बा समय लग जाता था इस लिए कबीर और रहीम के दोहों को तावारुद का नाम दिया जायेगा और आज अगर ऐसा कोई वाकया होता है तो इसको चोरी और सीना जोरी ही कहा जायेगा.क्युनके आज साधन बहुत हैं
कवि ने चोरी की है या उस पर तवारुद हुआ है इस बात को उस कवि से बेहतर कोई नहीं जानता जिस ने ये किया होता है क्युनके आज हर बात नेट पर और पुस्तकों मे उपलव्ध है,और कविसम्मलेन और मुशायरे भी अधिक होते हैं समाचार पत्रों में पत्रिकाओ में रचना यहाँ से वहाँ पहुँच जाती है
( लोग चोरी किस किस तरह करते हैं ये मैं अगले लेखों में लिखूंगा )
कविता लिखना और कविमना होना और कविमना होने का ढोंग करना अलग अलग बाते हैं
कविमना तो वह व्यक्ति भी है जो कविता लिखना नहीं जानता ग़ालिब शराबी थे जुआरी थे वेश्याओं के यहाँ भी उनका आना जाना था उन पर अंग्रेजों के लिए मुखबरी के आरोप भी लगे हैं इन सब के बावजूद
उर्दू शायरी मे ग़ालिब बाबा ए सुखन (कविता के पितामाह) हैं और रहेंगे. तो क्या वो कविमना नहीं थे
फिराक साहेब के बहुत से किस्से "मशहूर" हैं तो इससे उनके कविमना होने पर उनके चिंतन पर क्या फर्क पड़ता है
फिराक साहेब के बहुत से किस्से "मशहूर" हैं तो इससे उनके कविमना होने पर उनके चिंतन पर क्या फर्क पड़ता है
एक बात और कहना चाहूँगा के सवाल तो हमेशा छोटा ही होता है जवाब हमेशा सवाल की लम्बाई (उसमे प्रयोग शब्दों की गिनती) से अधिक होता है.
Technicalities को सीखे बग़ैर तो कोई रचना हो ही नहीं सकती जैसे हम बीमार होने पर झोला छाप डॉक्टर या BUMS के पास नहीं जाते कम से कम उस रोग के माहिर या उस अंग के माहिर के पास जाते हैं तो ये कहना ग़लत है के बिद्या से क्या. लेख लिखना भी एक बिद्या है और उसके अपने अलग फायदे हैं.
इस्तिफादा और चर्बा(चोरी)
१ . अगर दोनों रचनाकारों के शेर का विषय वही है परन्तु शब्द दुसरे है तो इस्तिफादा कहलाता है यानि प्रेरणा.
२. अगर दोनों रचनाकरों के विषय भी वही है शब्द भी लगभग -लगभग वही हैं तो फिर तो वो चोरी ही हुई
३. अब ये कवि के कविमना होने पर है के वो कितना ईमानदार है और कितनी ईमानदारी से सत्य स्वीकार करता है कहीं वो बात को छुपा तो नहीं रहा के साहेब मैं ने तो कभी ये शेर सुना ही नहीं.तो मैं कैसे चोर हो सकता हूँ.
३. साहित्य में ईमानदार (कविमना)होना पहली शर्त है.
4 . हम में विद्वान बनने की होड़ होनी चाहिए किन्तु खुद को विद्वान या बुद्धिजीवी साबित करने की होड़ नहीं होनी चाहिए
4 . हम में विद्वान बनने की होड़ होनी चाहिए किन्तु खुद को विद्वान या बुद्धिजीवी साबित करने की होड़ नहीं होनी चाहिए
दुनिया में अभी ऐसी कोई तकनीक विकसित नहीं हुई जो झूठ को १०० % पकड़ सके. ये कवि के कविमना होने पर यानी उसकी इमानदारी पर ही है और उसकी इमानदारी पर ही रहेगा.
मैं यहाँ प्रेरणा और चोरी दोनों के उदहारण पेश कर रहा हूँ .
इस्तिफादा
मुझे हफीज फ़रिश्ता कहेगी जब दुनिया
मेरा ज़मीर मुझे संगसार कर देगा (हफीज मेरठी)
खुद से अब रोज़ जंग होनी है
कह दिया उसने आइना मुझको (आदिल रशीद)
यहाँ दोनों ही शेर एक ही विषय पर हैं मगर दोनों के शब्द अलग अलग हैं ये प्रेरणा है यहाँ हफीज मेरठी के शेर का बिषय है के दुनिया मुझे फ़रिश्ता (कविमना ) कहेगी तो मेरा ज़मीर मुझे पत्थर मारेगा के तू ऐसा तो है नहीं और दुनिया तुझे देवता(कविमना) कहती है .
मेरे शेर में भी यही बात है इस शेर में कहा गया है के उस ने मुझे आइना यानि फ़रिश्ता ईमानदार (कविमना) कह दिया परन्तु मैं वैसा तो हूँ नहीं अब इसी बात को लेकर मेरी खुद से जंग होनी है के या तो तू कविमना हो जा या फिर ज़माने को बता दे के तू पाखंडी है धोकेबाज़ है
अगर मैं न बताऊँ तो कुछ लोग कभी नहीं जान पाएंगे के मैं ने इस शेर की प्रेरणा कहाँ से ली है
चर्बा (CHORI)
कटी पतंग का रुख मेरे घर की जानिब था
उसे भी लूट लिया लम्बे हाथ वालों ने (आजर सियान्वी)
कटी पतंग मेरी छत पे किस तरह गिरती
हमारे घर के बगल में में मकान ऊंचे थे (नामालूम, नाम लिखना उचित नहीं)
इसे हम चर्बा यानि चोरी क्यूँ कहेंगे इसलिए कहेंगे क्यूँ के यहाँ कटी पतंग भी है घर या छत भी है लम्बे मकान या लम्बे हाथ भी है और अर्थ भी वही है के कटी पतंग मुझे नहीं मिलेगी कारन भी लगभग लगभग वही है.
इसे हम चर्बा यानि चोरी क्यूँ कहेंगे इसलिए कहेंगे क्यूँ के यहाँ कटी पतंग भी है घर या छत भी है लम्बे मकान या लम्बे हाथ भी है और अर्थ भी वही है के कटी पतंग मुझे नहीं मिलेगी कारन भी लगभग लगभग वही है.
हमें ईमानदार होना चाहिए किसी दुसरे की अच्छी बात को अपने नाम से नहीं लिखना चाहिए सत्य को स्वीकार करना चाहिए क्यूँ के साहित्य में भी और जीवन में भी मौलिकता यानि सत्य बहुत बड़ी चीज़ है
महान शायर अल्लामा इकबाल को यूँ भी महान कहा जाता है के उन्होंने हमेशा खुले मन से स्वीकार किया और खुद लिखा के उनकी मशहूर रचना "लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी " एक अंग्रेजी कविता का अनुवाद है अगर वो ज़माने को उस समय न बताते तो आज के इस नेट युग में सबको पता चल जाता के ये PREY OF CHILD से प्रेरित है उस स्तिथि मे उन पर चोरी का इलज़ाम लगता लेकिन उन्होंने उसी समय जब नेट का विचार भी नहीं था अब से ५० साल पहले खुद लिख कर के ये एक अंग्रेजी कविता से प्रेरित है उसका अनुवाद है अपने को महान बना लिया.
बहुत से लोगो ने उर्दू हिंदी साहित्य में फारसी से कलाम चुराया है जो आज सब लोगों को पता चल गया है उस में बहुत से बड़े नाम हैं.चोरी औरझूठ ऐसी चीज़े है जो कभी छुपती नहीं हैं. इसी लिए कहा जाता है सत्यमेव जयते
अंत में हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई
जय हिंद जय भारत
आदिल रशीद
13 comments:
जी मेरा भी यही कहना है ..
प्रेरित होकर उसी शैली में लिखना पर विचार या भाव अपने हों वह चोरी के दायरे में नहीं आती ...
पर हू ब हू अनुवाद कर अपना नाम दे देना सरासर चोरी ही है ....
मैं तो खुद कई बार भुक्तभोगी हुई हूँ ....
ACHCHHAA LEKH HAI . BADHAAEE.
भाई आदिल, आपने बेहद सामयिक समस्या की व्याख्या करने का सफल यत्न किया है। मध्यकालीन काव्य में, जैसाकि आपने उदाहरण भी दिया है, ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं। कहानी और लघुकथा के क्षेत्र में भी ऐसे आरोप अक्सर सामने आते रहे हैं, आते रहेंगे। शायरी का क्षेत्र भी नि:संदेह इससे कभी अछूता नहीं रहा, न ही रहेगा। बहरहाल, आपका यह लेख बहुत लोगों को रोशनी देगा।
आदिल जी ,
बेहद रोचक विषय उठाया है आपने बहुत कुछ जानने को मिलेगा अगली कड़ी का इंतज़ार ....
सोनल जी आप एक बेहद अच्छी लेखिका हैं औरत जिस तरह एक चावल को मसल कर और किसान पैर के अंगूठे से ज़मीन को दबा कर ये एहसास कर लेता है क्या सही क्या ग़लत उसी प्रकार आपने मेरे लेख को सराह कर अपने बुद्धिजीवी होने का परिचय दिया है. सुकरात ने कहा था यदि सत्य को जानना हो तो परिचर्चा शुरू कर दो सत्य सामने आ जायेगा ...जो किसी ने कह भर दिया है वाही सत्य नहीं होता सत्य वो होता है जिसके तर्क के आगे आपके पास कोई जवाब न हो ....अगली कड़ी जल्द आएगी साहित्य मे चोरी भाग(2)
अच्छा लेख है भाई। चोरी के क़िस्से तो अक्सर सुनने को मिलते हैं मगर मुझे लगता है कि कभी-कभी अनजाने में दो शायरों के ख़याल टकरा जाते हैं। कई साल पहले अपने शहर के मुशायरे में किसी के अशआर सुने थे-
भीग जाती हैं जो पलकें कभी तनहाई में
काँप उठता हूँ कोई जान न ले.
ये भी डरता हूँ मेरी आँखों में
तुझे देखके कोई पहचान न ले
पाकिस्तान की मरहूम शायरा परवीन साकिर का भी इसी ख़याल पर एक शेर नज़र आया –
काँप उठती हूँ मैं ये सोचके तनहाई में
मेरे चेहरे पे तेरा नाम न पढ़ ले कोई
बहरहाल यह सिलसिला जारी रखिए।
साहित्य की सर्जना के लिये संवेदनशील हृदय और उन्हें उत्प्रेरित करने का संयोग समान परिस्थितिओं में एक जैसा होगा ही। अंतर मात्र भाषा औए शैली की हो सकती है क्योंकि कोई दो व्यक्ति प्राय: एक जैसी भाषा का संस्कार नहीं रखते हैं। जैसे कि आपने कबीर और रहीम के उदाहरण दिये हैं।
फिर भी किन्हीं विशेष परिस्थितियों में यह बिल्कुल एक जैसा भी हो सकता है। बिना किसी चोरी के ...
अस्तु आलेख के लिये धन्यवाद आदिल साहब
आपकी बात बिल्कुल सही है आदिल साहब, पर यह मुद्दा बेहद जटिल है। प्रेरणा और चोरी के अलावा भी संयोग हो सकता है। मुझे लगता है व्यक्ति का कविमना होना एक सीमा तक समझा और पहचाना जा सकता है, उसकी अधिक संख्या में रचनाओं का अध्ययन करके। दो कविमना रचनाकारों के मध्य भी संयोग हो सकता है, और यह भी सम्भव है कि दोनों में से किसी ने एक-दूसरे को न पढ़ा हो। यहां प्रेरणा और चोरी दोनों से इतर तीसरी बात हो जाती है, इसे समधर्मा के रूप में देखा जा सकता है। आज के समय में समस्याओं और अनुभवों की समरूपता की स्थितियों के कारण समान स्तर पर सोचने और अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की सम्भावनाएँ काफी अधिक हो गई हैं। चोरी, हर हाल में चोरी है; पर तमाम सम्भावनाओं और व्यवहारिक स्तर पर क्या सम्भव है, क्या नहीं, को नकारकर हम सब कोई फैसला नहीं कर सकते। दूसरी बात चोर को सन्देह के घेरे में लाकर या उसे पकड़कर भी क्या और किस तरह की कार्यवाही की जा सकती है? यह भी एक पेचीदा मुद्दा है। आपकी चिन्ताओं में शामिल हूँ, आशा है इस बहस में आगे कुछ और भी अच्छी बातें सामने आयेंगी।
उमेश जी नमस्कार
ये लेख रहीम जैसे महान कवि महान संत को चोर नहीं ठहराता बलके ये बताता है के ये सिर्फ एक तवारुद ही हो सकता है आज कल साहित्य मे (उस समय तो चोरी थी ही नहीं ) चोरियां बढ़ रही है और प्रतिदिन इस की रफ़्तार तेज़ हो रही है और उन चोरो को तरह तरह से सम्मान पुरूस्कार भी मिल रहे हैं ऐसे मे उन लोगों की म्हणत का क्या होगा जो बहुत अध्यन करके मेहनत से नया ख्याल पेश करते हैं
आदिल रशीद
sateek lekh...
धन्यवाद भावना साहिबा आपकी एक कविता का अनुवाद भी किया है मैं ने
लोगो ने धारणा बना रखी है के ज़रा सा ख्याल टकराए तो चोरी कह देते हैं और नए लिखने वालों का मनोबल कमज़ोर करते है लोग मेरा ये लेख प्रमाण/तर्क के रूप मे रखते हैं अभी इसकी अगली कड़ियाँ आयेगीं ..आदिल रशीद
एक अच्छे लेख के लिये बधाई ।
आदिल भाई। लेख अच्छा है
Post a Comment