Thursday, November 25, 2010

हिदुस्तानियों के नाम एक नज़्म पैग़ाम/aadil rasheed

    
 एक नज़्म पैग़ाम(सन्देश)  
चलो पैग़ाम दे अहले वतन को
कि हम शादाब रक्खें इस चमन को
न हम रुसवा करें गंगों -जमन को
करें माहौल पैदा दोस्ती का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का


कसम खायें चलो अम्नो अमाँ की
बढ़ायें आबो-ताब इस गुलसिताँ की
हम ही तक़दीर हैं हिन्दोस्ताँ की
हुनर हमने दिया है सरवरी का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का

ज़रा सोचे कि अब गुजरात क्यूँ हो
कोई धोखा किसी के साथ क्यूँ हो
उजालों की कभी भी मात क्यूँ हो
तराशे जिस्म फिर से रौशनी का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का

न अक्षरधाम, दिल्ली, मालेगाँव
न दहशत गर्दी अब फैलाए पाँव
वतन में प्यार की हो ठंडी छाँव
न हो दुश्मन यहाँ कोई किसी का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का


हवाएँ सर्द हों कश्मीर की अब
न तलवारों की और शमशीर की अब
ज़रूरत है ज़बाने -मीर की अब
तक़ाज़ा भी यही है शायरी का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का

मुहब्बत का जहाँ आबाद रक्खें
न कड़वाहट को हरगिज़ याद रक्खें
नये रिश्तों की हम बुनियाद रक्खें
बढ़ायें हाथ हम सब दोस्ती का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का


यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का
जय हिंद!
आदिल रशीद
Aadil रशीद
NEW DELHI
9810004373   
9811444626




29 comments:

Rajeev Bharol said...

बहुत उम्दा नज़्म.

"हवाएँ सर्द हों कश्मीर की अब
न तलवारों की और शमशीर की अब
ज़रूरत है ज़़बाने -मीर की अब
तक़ाज़ा भी यही है शायरी का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का"

बहुत ही अच्छा ख्याल.
बधाई एवं धन्यवाद.

शरद तैलंग said...

बहुत ही शानदार और जानदार नज़्म है । बधाई !

बलराम अग्रवाल said...

'मुहब्बत का जहाँ आबाद रक्खें
न कड़वाहट को हरगिज़ याद रक्खें
नये रिश्तों की हम बुनियाद रक्खें
बढ़ायें हाथ हम सब दोस्ती का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का'
आपने पहली ही मुलाक़ात में दिल को जीत लिया था। तभी से बार-बार आपको पढ़ने-सुनने का मन बना रहता है। बहुत अच्छी नज्म कही है। बधाई। क़रीब-क़रीब इसी ज़मीन पर कुछ माह पहले मैंने एक लघुकथा 'बीती सदी के चोंचले' लिखी थी।

pakheru said...

भाई आदिल, बहुत खूब... आज माहौल को इसी किस्म के जज्बे और हौसले की ज़रूरत है. तुमने आगाज़ किया है, अब ज़माना पीछे पीछे आये. एक छोटी सी बात ? हवाएं सर्द हों कश्मीर की अब की जगह हवाएं दिल की हों कश्मीर की अब कहा जाय तो कैसा रहे... खैर, तुम्हारी बुलंद ख्याली अपनी जगह दुरुस्त है.

अशोक गुप्ता
मोबाईल 09871187875

सहज साहित्य said...

आज अगर हम सियासत के चक्रव्यूह से निकलकर इंसानियत का पाठ पढ़ने के इच्छुक हैं तो भाई आदिल रशीद की नज़्म का मर्म समझना पड़ेगा और उसके सन्देश पर चलना पड़ेगा । तभी हमारा देश तरक्की कर सकता है ।

निर्मला कपिला said...

करें माहौल पैदा दोस्ती का

यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का


कसम खायें चलो अम्नो अमाँ की

बढ़ायें आबो-ताब इस गुलसिताँ की
बहुत ही शानदार नज़म आज इसी पैगाम की जरूरत है\ बहुत बहुत धन्यवाद शुभकामनायें।

ओमप्रकाश यती said...

कोई धोका किसी के साथ क्यूँ हो
उजालों की कहीं भी मात क्यूँ हो.....
आदिल भाई एक सार्थक और ज़रूरी नज़्म के लिए बधाई.

Priyanka Telang said...

behatareen paigaam...i salute the spirit...it should be spread all over

रश्मि प्रभा... said...

bahut badhiyaa

पारुल "पुखराज" said...

उम्दा !

अनुपमा पाठक said...

संदेशपूर्ण ओजस्वी रचना!
आभार !

ZEAL said...

इस बेहतरीन ग़ज़ल एवं उम्दा सन्देश के लिए आभार।

सुभाष नीरव said...

एक बेहतरीन नज्म ! बधाई !

स्वप्न मञ्जूषा said...

बहुत ही अच्छी भावना से लिखी गई नज़्म...
बेहद्द खूबसूरत अंदाज़-ए-बयाँ है...

Aadil Rasheed said...

आदरणीय काम्बोज जी, अशोक जी नज़्म को पसन्द करने का धन्यवाद आप् का एक मशवरा है के हवाएं सर्द हों कश्मीर की अब की जगह हवाएं दिल की हों कश्मीर की अब कहा जाय तो कैसा रहे... सर्वप्रथम तो आप का शुक्रिय आप् ने प्रश्न तो किया ये भी एक अच्छी बात है लोग प्रश्न ही नहीं करते तो हुज़ूर सर्द यानी ठन्डा होना इशारा है वरना ये तो विदित ही है के कश्मीर मे ठन्ड ही होती है,
पुरे बन्द क अर्थ देखें
हवाएँ सर्द हों कश्मीर की अब / न तलवारों की और शमशीर की अब / ज़रूरत है ज़बाने मीर की अब / तक़ाज़ा भी यही है शायरी का / यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का /
आप् का अनुज
आदिल रशीद

Unknown said...

बन्धु आदिल जी

आपकी नज़्म आपकी सोच पढ़ती है. मैं ऐसे मित्रों को हर पल ढ्ढ़ता रहा हूं ...... आज आप भी मिले .... बहुत अच्छा लगा आपको पढ़कर. अभी हम सबको बहुत कुछ करना है. जरा इसे भी पढ़ियेगा
कहां है दीन और इस्लाम .... हे राम.! [कविता] - श्रीकान्त मिश्र ’कान्त’
http://trishakant.blogspot.com

बाशिद चाचा ......
कहां हो तुम,
तुम्हारे ......
पंडी जी का बेटा
तुम्हारा दुलारा मुन्ना
हास्पिटल के वार्ड से
अपनी विस्फोट से
चीथड़े हुयी टांग......

शायद अब भी मनाते होंगे
होली और ईद साथ साथ
ज़न्नत या स्वर्ग .....

शरीफ़ुल और इकबाल भैया
हिज़ाब के पीछे से झांकती
भाभीजान का टुकटुक मुझे ताकना
........
..... कहां खो गया सब
औरतों को ले जाते हुये
लहड़ू में.... पूजा के लिये
हाज़ी सा दमकता...
वो तुम्हारा चेहरा
मंदिर पर भज़नों के बीच
ढोलक पर मगन चच्ची


छीन लिये हैं आज...
वोट वालों ने हमसे हमारे बच्चे...
और भर दिये हैं उनकी मुठ्ठी में
नफ़रत के बीज
कहां है दीन और इस्लाम
हे राम........!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

Bahut sundar Nazm. Desh aur deshwaasiyon ke hit me.

उमेश महादोषी said...

आदिल साहब, शुक्रिया! लिंक भेजने और इतनी खुबसूरत नज्म पढ़वाने के लिए।
मुहब्बत का जहाँ आबाद रक्खें
न कड़वाहट को हरगिज़ याद रक्खें
नये रिश्तों की हम बुनियाद रक्खें
बढ़ायें हाथ हम सब दोस्ती का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का..........

आज समाज को इसी मार्गदर्शन की जरूरत है .......

shama said...

चलो पैग़ाम दे अहले वतन को
कि हम शादाब रक्खें इस चमन को
न हम रुसवा करें गंगों -जमन को
करें माहौल पैदा दोस्ती का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का

Wah! Kya gazab kee nazm hai...aankhen nam ho aayeen!

Amit K Sagar said...

बहुत-बहुत उम्दा रचना. वाह! और क्या कहूं इक़ मुकम्मल नज़्म!
जारी रहें.
---
कुछ ग़मों के दीये

रचना दीक्षित said...

हर एक बात खरी कितनी सीधी सच्ची और सकारात्मक बातें सही मार्ग दर्शन करती हुई. बेहतरीन नज़्म

pran sharma said...

SAAMYIK NAZM KE LIYE BADHAAEE
AUR SHUBH KAMNA .

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Aadil bhai,
bahut umda khayaal. ek behtareen nazm keliye badhai sweekaaren.

सुरेश यादव said...

आदिल जी आप की नज्म ने मन को छुआ है .मानवीय संवेदना को शब्दों में उकेरने के लिए बधाई .

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत उम्दा नज़्म.

prritiy----sneh said...

Bahut hi khoobsurat bhav liye hue rachna hai. sach hi bahut achha laga aapko padhna.

shubhkamnayen

prritiy----sneh said...

Bahut hi khoobsurat bhav liye hue rachna hai. sach hi bahut achha laga aapko padhna.

shubhkamnayen

prritiy----sneh said...

Bahut hi khoobsurat bhav liye hue rachna hai. sach hi bahut achha laga aapko padhna.

shubhkamnayen

Aadil Rasheed said...

aap sab ka shukriya dhanyvaad mamnoon o mashkoor hun
aadil rasheed