Saturday, October 30, 2010

दो शेर /आदिल रशीद /aadil rasheed

दो शेर 
आज निपटे हैं ज़िम्मेदारी से आज से 
आज से तुम को याद करना है 
जिन्दगी की उलझनों ने मुझे इतना वक़्त नहीं दिया के मैं तुम्हे उस एहतमाम से याद कर सकूं, उस तरह याद कर सकूं जिस तरह याद किया जाना तुम्हारा हक है मुझ पर  मै  आज ज़िन्दगी की तमाम उलझनों से आज़ाद हूँ आज मैं वाकई तुम्हे उस तरह याद कर सकता हूँ  सच्चे दिल से ............................याद करने का अभिनय नहीं

पहले फरयाद उन से करनी है 
फैसला उसके बाद करना है
 पहले रिश्ता बहाल करने की  इल्तिजा ,फरयाद गुज़ारिश, बीते खुशनुमा दिनों का  हवाला,वास्ता यानि  हर मुमकिन कोशिश के किसी तरह रिश्ता बहाल रहे ,और जब कोई रास्ता न बचे तो फिर हार के बे मन से एक गम्भीर फैसला यानि तर्के ताल्लुक
आदिल रशीद 

Saturday, October 23, 2010

मुफ्त मे पूरी दुनिया मे बात करने का सरल माध्यम /आदिल रशीद/aadil rasheed/23/10/2010

आज रात  को करीब १० बजे मोबाईल की घंटी बजी
उधर से एक  आवाज आई  जनाब आदिल रशीद जी बोल रहे हैं ?
मैं ने कहा जी जनाब लगभग आदिल रशीद ही बोल रहा हूँ आप कौन उधर एक अनजान
आवाज थी इसलिए मैं समझा किसी टेली मार्केटिंग का फोन होगा मगर रात के १०बजे? दिल मे सवाल उठा
क्यूँ के दिन भर तो  टेली मार्केटिंग की सुरीली नाज़ुक  फोनी आतंक से दिल
डरा रहता है इसलिए मजाक मे लगभग आदिल रशीद कह दिया और फिर अब हमारी उम्र भी
नहीं रही के किसी से उलझा जाए जल्दी से किसी दोस्त को अपना पी.ए.बता कर और उसका मोबाइल नम्बर देकर जान छुटाने  का आइडिया भी कई दिलफेंक करीबी दोस्तों ने ही दिया है  साथ मे विनती भी के आदिल भाई नम्बर देना तो सिर्फ मेरा ही देना क्यूँ के हमारे पास ऐसी अनजान सुरीली नाज़ुक संगे मरमरी आवाजों के लिए वक़्त ही वक़्त है............
उधर से फिर आवाज़ आई आदिल रशीद जी से बात करनी है आवाज़ मर्दानी थी वक़्त रात के १० बजे का था इसलिए इसलिए  दूसरी बार मे मैं ने कहा जी मैं आदिल रशीद ही बोल रहा हूँ फरमाइए,
उधर से आवाज़ आई मैं बिजनोर से डाक्टर अजय बोल रहाहूँ
बिजनोर का ज़िक्र आया तो जेहन कालागढ़ की तरफ भी गया मैं ने सोचा के कहीं कोई भुला भटका बचपन का हमसफ़र तो नहीं जो आगे मिलने का वादा  कर गया था कभी.
मगर अफ़सोस ये गुमान चार सेकेण्ड भी न रहा उधर से  जुमला पूरा हुआ
आपका ब्लॉग देखा पसंद आया ग़ज़लें भी पसंद आई आपका लेख आज विजय दशमी यानी ईद का दिन है/आदिल रशीद/aadil रशीद बेहद पसंद आया आपकी बेव साईट http://www.lafzduniya.com/ को भी देखा एक बेहद जानकारी देने वाली साईट है मैं ने शुक्रिया कहा बात चल पड़ी उन्हों ने मेरे ऊपर एक दोहा  भी कह दिया हाथों हाथ
ख़त को पढके आपके,जाना कितनीं ईद
बदली मेरी ज़िदंगी, लिक्खा खूब 'रशीद'
जो उनके पुख्ता शायर होने का सबूत दे रहा था
बात एक बार फिर  चल निकली ग़ज़ल के दोषों पर तो और ख़ुशी हुई के सिर्फ उर्दू मे ही नहीं हिंदी मे भी अभी लोग ग़ज़ल पर बात करने वाले है जो ग़ज़ल को ग़ज़ल ही रहने देना चाहते हैं तमाशा  नहीं बनाना चाहते ,अभी  कुछ लोग हैं जो उन कैदों को मान रहे है जिसकी वजह से ग़ज़ल आज भी सभी के दिलों पर राज कर रही है और ग़ज़ल का जादू सर चढ़ कर बोल रहा है खूब बातें हुई लगभग दो घंटा मेरे दिल मे ख्याल आया के ये कैसे डाक्टर है जो पॉइंट टू पॉइंट बात नहीं कर रहे हैं इनके पास इस युग मे भी वक़्त ही वक़्त है और  मैं भी आज के इस मोबाईल युग  में वही शिष्टाचार के  रुढी वादी सिधान्त लिए बैठा था जो पापा ने एक बार बताये थे के बात शुरू करने वाला ही बात समाप्त करता है इसी शिष्टाचार को जेहन मे रख कर ग्राहम बेल ने लेंड लाइन फोन मे इसे बरक़रार रखा था वो ही शिष्टाचारी विशेषता अभी  कुछ समय पहले तक(मोबाइल की खोज तक ) पाई भी जाती थी  के फ़ोन करने वाला ही फोन  काट  सकता था सुनने वाला नहीं
आज कल तो शायद इस शिष्टाचार के मतलब बेवखुफ़ी हैं ,लोग उसे फ़ालतू का समझ लेते हैं ये अलग बात है वो  आदमी खुलूस का सुबूत दे रहा होता है या शिष्टाचारवश  फोन नहीं काट रहा होता है. बहुत से  लोग पॉइंट टू पॉइंट  बात करने की वकालत करते हैं मेरी निगाह मे पॉइंट टू पॉइंट सिर्फ कारोबार हो सकता है दोस्ती नहीं, साहित्यिक वार्तालाप नहीं , अदबी गुफ्तुगू नहीं, जो लोग सिर्फ कारोबारी जेहन रखते हैं वो पॉइंट टू  पॉइंट बात करते है या जो लोग कुछ नहीं जानते वो पॉइंट टू पॉइंट बात करते है क्यूंकि यहाँ एक देहाती मुहावरा कितना बड़ा तर्क देता है जो जानता है वो ही तानता है  यानि जो जानता है वो ही बोलता है
जो अदबी जेहन रखते हैं उनकी फितरत के बारे मे एक शेर अर्ज़ है
हम इश्क के मारो की फितरत ही निराली है
बैठे हैं तो बैठे हैं ,चलते हैं तो चलते हैं
खैर बात चल निकली तो खूब दूर तक भी गई ,लगभग दो घंटो तक चला ये पहली मुलाक़ात पर गुफ्तुगू का सिलसिला 
दिल ने डाक्टर साहेब की मुहब्बत उनके ख़ुलूस  को नमन किया आखिर लगभग १२०/- रूपए खर्च करना महज़ अदबी गुफ्तुगू पर किसी शख्स  की मुहब्बत की निशानी नहीं तो और क्या है वर्ना मैं तो बहुत से ऐसे लोगों को
जानता हूँ जो अपना समय खर्च नहीं करते पैसा चाहे कितना खर्च करा लो मैं अभी उनके इस अदबी खर्च (फ़िज़ूल खर्च ) पर ग़ौर कर ही रहा था के तभी ख्याल आया के दुनिया मे बातूनी लोगो के लिए  मुफ्त मे बात करने के लिए एक सरल माध्यम है जिसका नाम है http://www.skype.com/intl/en/होम  इस link से आप स्काइप  डाऊनलोड कर सकते हैं और पूरे विश्व मे कहीं भी  फ्री मे बात कर सकते हैं और खूब ढेर सारी बातें कर सकते हैं खूब ज्ञान की गंगा बहा सकते हैं  क्यूँ के  जब जानोगे तो ही तो तानोगे यानी बोलोगे भाई  ................आदिल रशीद /aadil rasheed/ 23-10-2010
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nazm manzil-e-maqsood aadil rasheed/आदिल रशीद नज़्म /मन्ज़िल-ए-मक़्सूद

ये एक पुरानी नज़्म है




अजय

Saturday, October 16, 2010

आज विजय दशमी यानी ईद है/आदिल रशीद/ aadil rasheed/17/10/2010

आज विजय दशमी यानी ईद है
रोम रोम फिर व्याकुल है
कितनी यादे सिमट कर एक कहानी सी कह रहीं हैं.आज का दिन एक खास उल्लास का दिन होता था दुर्गा पूजा रावण दहन का दिन मोज मस्ती का दिन.
बिल्कुल आज की ईद जैसा क्य़ू के आज तो मेरे बच्चों की ज़िन्दगी में केवल दो ही ईदें हैं
कालागढ मे तो मेरे बचपन मे कितनी ईदें होती थी.दुर्गा पूजा रावण दहन विजय दशमी की ईद ,होली की ईद,क्रिसमस की ईद ,रक्षा बंधन की ईद विश्वकर्मा दिवस की ईद,
15 अगस्त, 26 जनवरी, 2अक्तूबर, रविदास जयंतीकी ईद.
रविदास जयंती,15अगस्त 26जनवरी, 2 अक्तूबर को होने वाले खेलों में 100मीटर रेस में हमेशा शन्नू और शमीम को हराकर 50 पैसे क़ा पेन (गोल्ड मेडल )जीतने की ईद ऊँची कूद में हर बार शन्नू से हार जाने की ईद क्यूँ के गोल्ड मेडल जीता तो दोस्त ने ही और दोस्ती मे क्या तेरा और क्या मेरा।
अपने जन्म दिन 25 दिसम्बर पर हर बार मिसेज़ विलियम का एक ह़ी डायलाग सुनने की ईद "तुम ने मेरा क्रिसमस खराब किया था संन" क्यूँ के मैं और मेरा छोटा भाई छुट्टन 25 दिसम्बर को ह़ी पैदा हुए थे और उन्होंने पूरी रात जश्न के बजाये अस्पताल मे काटी
थी
और भी बहुत सी छोटी छोटी ईदें जैसे के शन्नू के ख़त का जवाब जाने की ईद, रश्मि गहलोत के घर की राजस्थानी कचोरी खाने की ईद ,सब दोस्तों का पैसे मिला कर डबल सेवेन या कोका कोका कोला पीने की ईद हरमहीने की पहली तारीख की ईद क्यूँ के उस तारीख को पापा को तन्खवाह मिलती थी और हमें कोई कोई तोहफा तब रोज़ एक ईद होती थी क्यूँ के ईद अरवी का शब्द (लफ्ज़ ) है स्त्रीलिंग है और  जिसके लुग्वी यानि शाब्दिक अर्थ है, ख़ुशी ,वो ख़ुशी जो रोम रोम से महसूस हो, पलट कर आने वाली ख़ुशी .
शन्नू और शमीम हमेशा रेस में हारने पर कहा करते थे के बच्चू एक दिन तुझे ज़रूर हरायेगे और ज़िन्दगी की दौड में वाकई दोनों ने
मुझे हरा दिया शन्नू 1990 में ही और शमीम अभी २महीने पहले सउदी अरब में मुझे तन्हा छोड़ गया और आज मेरी रेस सिर्फ और सिर्फ खुद से है .......आदिल रशीद (चाँद) 17/10/2010