Wednesday, December 30, 2009

sachin tendulkar aur saurav ganguli ke saath aadil rasheed

सचिन तेंदुल्कर,सौरव गांगुली के साथ आदिल रशीद

प्यार का सिलसिला ही कितना था ..... आदिल रशीद

प्यार का  सिलसिला ही कितना था 
शब् को मैं जागता ही कितना था 

तुझको अफ़सोस मैं ने कुछ न कहा 
और तू भी खुला ही कितना था 


बेवफाई का क्या करे शिकवा 
तू हमारा हुआ ही कितना था  

मैं ने ये कह के दिल को समझाया 
वो मुझे जानता ही कितना था 

आज बर्बाद हूँ तो ग़म क्यूँ है 
तू मुझे टोंकता ही कितना था 

ऐसे वैसों के हाथ आ जाता 
दाम मेरा गिरा ही कितना था 

बे सबब ही उदास हो आदिल 
मिलना जुलना हुआ ही कितना था  


ek puraani tasveer 1988/aadil rasheed

ek puraani tasveer /aadil rasheed-1993,

munawwar rana & aadil rasheed

शाहबाज़ नदीम,मुनव्वर राना,अनवर बारी और आदिल रशीद


munaawar rana aadil rasheed

मुनव्वर राना आदिल रशीद एक कार्यक्रम में

munawwar rana ke saath आदिल रशीद

मुनव्वर राना और आदिल रशीद

munawwar rana ke saath aadil rasheed mushaire ke bad khush gawar lamhon men

मुनव्वर राना आदिल रशीद मुशायरे  के बाद कुछ हसीं लम्हे

prof waseem barelvi,makhmoor saeedi ke saath aadil rasheed

मख़मूर सईदी प्रो वसीम बरेलवी के साथ/आदिल रशीद

munawwar rana ke saath aadil rasheed

मशहूर शायर मुनव्वर राना और आदिल रशीद

prof waseem barelviaur mashoor naazim mueen shadab ke saath aadil rasheed

मशहूर संचालक मुईन शादाब और प्रो वसीम बरेलवी के साथ 


mashoor naqid aur shair muzaffar hanfi ke saath aadil rasheed

मशहूर शायर और आलोचक श्री मुज़फ़्फ़र हनफ़ी के साथ आदिल रशीद

aadil rasheed ke samman men kavi goshti aur mushaira ki katran

आदिल रशीद के सम्मान में एक कार्यक्रम की ख़बर की कटिंग

prof waseem barelvi aur aadil rasheed ek mushaire men

प्रो वसीम बरेलवी के साथ उर्दू अकादमी का एक मुशायरा




naye puraane charagh aadil rasheed

नये पुराने चराग़ उर्दू अकादमी दिल्ली के एक कार्यक्र्म मे काव्य पाठ करते आदिल रशीद 

aadil rasheed mushaire men

padam shree bekal utsahi aur aadil rasheed

aadil rasheed ek mushayre men kalam padhte hue/

786 /७८६/अंक को शुभ क्यूँ माना जाता है.....aadil rasheed




786 /७८६/अंक को शुभ क्यूँ माना जाता है

याद कीजिये फिल्म दीवार का वो मंज़र अमिताभ के सीने पर गोली लगती और उन्हें कुछ नहीं होता गोली उनके बिल्ला नम्बर "786"  से टकरा कर बेकार हो चुकी है अमिताभ उस बिल्ले को कोट की जेब से निकाल कर चूमते हैं  फिर फिल्म कूली मे वही चमत्कारी  बिल्ला नंबर "786"  लगाते है   कूली मे एक जबरदस्त हादसे में  घायल होते है जिंदगी और मौत की जंग मे जीत ज़िन्दगी की होती है और वो रुपहले परदे पर भी और अपने वास्तविक जीवन मे भी अंक "786''  के ज़बरदस्त कायल हो जाते हैं और आज भी वह और उनका परिवार अंक "786" को अपने लिए शुभ मानता है

क्या है ये अंक 786 और क्यूँ मानते हैं इसको शुभ 

 एक अरबी भाषा का शब्द है "अबजद" जिसका एक मतलब होता हैं किसी बिद्या को सीखने की सब से पहली स्तिथि यानि अलिफ़,बे,ते (A.B.C.D.) क ख ग घ  सीखना


 जो दूसरा मतलब है वो अपने आप मे एक विद्या हैं किसी भी शब्द के नंबर निकालना ये अरबी की विद्या है इसलिए अरबी के तरीके से ही चलती है इसमें अरबी के हर अक्षर को एक गिनती दी हुई है किसी शब्द मे जो जो अक्षर प्रयोग होते हैं उन को गिन कर जोड़ कर जो योग निकलता है वही उस शब्द के अंक होते है आदिल रशीद को उर्दू मे लिखेंगे عادل رشید इसमें प्रयोग हुआ ऐन. अलिफ़ ,दाल, लाम, तो इस में 
ऐन के=70, अलिफ़ के =1 दाल के=4 लाम के=30 टोटल = 105 
इसी तरह रशीद रे के =200 शीन के =300 ये के =10 दाल के =4 टोटल=314 
आदिल रशीद के हुए 105 +314=419
इसी हिसाबे अबजद से बिस्मिल्लाह हिर रहमानिर रहीम जिसके अर्थ होते हैं "शुरू करता हूँ उस अल्लाह के नाम से  जो बेहद रहम वाला है"
अगर पुरे  वाक्य "बिस्मिल्लाह हिर रहमानिर रहीम" के अंक(नंबर) अबजद से निकालें तो बनेगे 786 इसी लिए मुस्लिम्स में  इसको लकी माना जाता है बहुत से लोग इसको नहीं भी मानते. 
 इस में हिन्दू मुस्लिम्स एकता का भी एक मन्त्र छुपा है अगर हम इसी तरह से " हरे रामा हरे कृष्णा" के निकालें तो भी निकलेंगे 786 दोनों के बिलकुल एक समान.
काश ये हमारे कुछ नेता गण समझ जाएँ  इश्वर एक है उसका सन्देश एक है मानवता सब से बड़ा धर्म है.

अरबी के सभी अक्षरों के नम्बर इस प्रकार हैं,
अलिफ़ =1,बे=2,जीम=3,दाल=4,हे=5,=वाओ=6, ज़े=7,बड़ी हे =8,तूए के =9,ये =10
छोटा काफ =20,लाम=30,मीम=40,नून के =50,सीन=60,ऐन =70,फे=80,स्वाद =90,
बड़े काफ =100,रे =200,शीन =300,ते =400,से=500,खे=600,जाल -700,जवाद =800
जोए =900,गैन=1000,

अबजद के खेल में ताश जिसे इल्मी ताश कहा जाता है बच्चे इल्मी ताश खेलते है और आये हुए पत्तों से शब्द बनाते हैं  इस से उनका शब्द ज्ञान बढ़ता है 
हाज़िर है एक ग़ज़ल के चन्द शेर 

सब तो  बैठे हुए हैं मसनद पर 
हम ही ठहरे हुए हैं अबजद पर  

कल ही मिटटी से सर निकाला है
आज ऊँगली उठा दी बरगद पर 

आँख सोते मे भी खुली रखना 
सब की नज़रें लगीं हैं मसनद पर 

आज के दिन बटा था इक आँगन 
आज मेला लगेगा सरहद पर 


पहले उसने मेरे कसीदे पढ़े 
घूम फिर कर वो आया मकसद पर